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धान की खेती कैसे करें उन्नत आधुनिक खेती

धान की खेती कैसे करें इसकी पूरी जानकारी यहाँ मिलेगा। अगर आप एक किसान है और धान की उन्नत एवं आधुनिक खेती करना करना चाहते है तब आपको इसकी खेती के तरीके जरूर मालूम होना चाहिए। धान के लिए खेत को तैयार कैसे करते है, बीज का चुनाव कैसे करते है, धान में लगने वाले कीट एवं रोग का नियंत्रण कैसे करेंगे इसकी जानकारी होना बहुत जरुरी है। एक किसान के लिए धान उगाने से लेकर फसल काटने तक क्या क्या सावधानी अपनाना होता है उसकी जानकारी होना जरुरी है।

खरीफ फसलों में धान प्रमुख फसल है। प्रदेश में गत 5 वर्षों में धान के अन्तर्गत क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़े अनुसार प्रदेश में चावल की औसत उपज में वृद्धि हो रही है और अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत कम है। इसकी उत्पादकता बढ़ाने की काफी सम्भावना है। यह तभी सम्भव हो सकता है जब सघन विधियों को ठीक प्रकार से अपनाया जाय। धान की अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

  • स्थानीय परिस्थितियों जैसे क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी, सिंचाई साधन, जल भराव तथा बुवाई एवं रोपाई की अनुकूलता के अनुसार ही धान की संस्तुत प्रजातियों का चयन करें।
  • शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज बोयें।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों, हरी खाद एवं जैविक खाद का समय से एवं संस्तुत मात्रा में प्रयोग करें।
  • उपलब्ध सिंचन क्षमता का पूरा उपयोग कर समय से बुवाई/रोपाई करायें।
  • पौधों की संख्या प्रति इकाई क्षेत्र सुनिश्चित की जाय।
  • कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण किया जाये।
  • कम उर्वरक दे पाने की स्थिति में भी उर्वरकों का अनुपात 2:1:1 ही रखा जाय।
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धान की खेती कैसे करें सम्पूर्ण जानकारी

01. भूमि की तैयारी

गर्मी की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही खेत की मजबूत मेड़बन्दी भी कर देनी चाहिए ताकि खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके। अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा/सनई ली जा रही है तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का प्रयोग भी कर लिया जाय। धान की बुवाई/रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व खेत की सिंचाई कर दें, जिससे कि खरपतवार उग आवे, इसके पश्चात् बुवाई/रोपाई के समय खेत में पानी भरकर जुताई कर दें।

02. धान की प्रजातियों का चयन

प्रदेश में धान की खेती असिंचित व सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई एवं रोपाई द्वारा की जाती है। विभिन्न जलवायु, क्षेत्रों और परिस्थितियों के लिए धान की संस्तुत प्रजातियों के गुण एवं विशेषतायें नीचे दिया गया है।

1. असिंचित दशा शीघ्र पकने वाली

  • सीधी बुवाई – गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, शुष्क सम्राट,
  • रोपाई – गोविन्द‚ नरेन्द्र-80, शुष्क सम्राट, मालवीय धान-2, नरेन्द्र-118

2. सिंचित दशा शीघ्र पकने वाली (100-120) दिन

नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97 शुष्क सम्राट मालवीय धान-2, मनहर, पूसा-169, नरेन्द्र-80, पन्त धान-12, पन्त धान-10

3. मध्यम अवधि में पकने वाली (120-140 दिन)

पन्त धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, पूसा-44, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-3112-1

4. देर से पकने वाली (140 दिन से अधिक)

  • सुगन्धित धान – टा-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा-बासमती-1, पूसा सुगन्ध-4 एवं 5, बल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, तारावडी बासमती, स्वर्णा, महसूरी
  • ऊसरीली – साकेत-4‚ झोना-349 साकेत-4, बासमती-370, पूसा बासमती-1, वल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, नरेन्द्र सुगंध

04. शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का चयन

प्रमाणित बीज से उत्पाद अधिक मिलता है और कृषक अपनी उत्पाद (संकर प्रजातियों को छोड़कार) को ही अगले बीज के रूप में सावधानी से प्रयोग कर सकते है। तीसरे वर्ष पुनः प्रमाणित बीज लेकर बुवाई की जावे।

05. उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है। यदि किसी कारणवश मृदा का परीक्षण न हुआ तो उर्वरकों का प्रयोग निम्न प्रकार किया जायः

सिंचित दशा में रोपाई (अधिक उपजदानी प्रजातियां : उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर)

प्रजातियांनत्रजनफास्फोरसपोटाश
शीघ्र पकने वाली1206060
प्रयोग विधिः नत्रजन की एक चौथाई भाग तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा कूंड में बीज के नीचे डालें, शेष नत्रजन का दो चौथाई भाग कल्ले फूटते समय तथा शेष एक चौथाई भाग बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें।
प्रजातियांनत्रजनफास्फोरसपोटाश
मध्यम देर से पकने वाली प्रयोग विधि1506060
सुगन्धित धान (बौनी) प्रयोग विधि120 6060

देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०

प्रजातियांनत्रजनफास्फोरसपोटाश
शीघ्र पकने वाली603030
मध्यम देर से पकने वाली603030
सुगन्धित धान603030
प्रयोग विधिः रोपाई के सप्ताह बाद एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें।

सीधी बुवाई

उपज देने वाली प्रजातियाँ

नत्रजनफास्फोरसपोटाश
100-12050-6050-60
प्रयोग विधिः फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद, एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें।

देशी प्रजातियां: उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर

नत्रजनफास्फोरसपोटाश
603030
प्रयोग विधिः तदैव वर्षा आधारित दशा में: उर्वरक की मात्रा- किलो/हेक्टर

देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०

नत्रजनफास्फोरसपोटाश
603030
प्रयोग विधिः सम्पूर्ण उर्वरक बुवाई के समय बीज के नीचे कूंडों में प्रयोग करें।

नोटः लगातार धान- गेहूँ वाले क्षेत्रों में गेहूँ धान की फसल के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन/हे० गोबर की खाद का प्रयोग करें।

06. जल प्रबन्ध

देश में सिंचन क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी धान का लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिचिंत है, जबकि धान की फसल को खाद्यान फसलों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने, बाली निकलने फूल, खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए अति संवेदनशील हैं। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है।

इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 सेमी० सिंचाई करना उपयुक्त होता है। यदि वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई अवश्य करें। खेत में पानी रहने से फास्फोरस, लोहा तथा मैंगनीज तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि कल्ले निकलते समय 5 सेमी० से अधिक पानी अधिक समय तक धान के खेत में भरा रहना भी हानिकारक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पानी भरा रहता हो वहॉ जल निकासी का प्रबन्ध करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन पर कुप्रभाव पडेगा। सिंचित दशा में खेत में निरन्तर पानी भरा रहने की दशा में खेत से पानी अदृश्य होने की स्थिति में एक दिन बाद 5 से 7 सेमी० तक पानी भर दिया जाय इससे सिंचाई के जल में भी बचत होगी।

07. धान में फसल सुरक्षा

धान के प्रमुख कीट

  1. दीमक
  2. जड़ की सूड़ी
  3. पत्ती लपेटक
  4. नरई कीट
  5. गन्धी बग
  6. पत्ती लपेटक
  7. सैनिक कीट
  8. हिस्पा
  9. बंका कीट
  10. तना बेधक
  11. हरा फुदका
  12. भूरा फुदका
  13. सफेद पीठ वाला फुदका
  14. गन्धी बग

धान में लगने वाले ये प्रमुख कीट है। अगर समय रहते इसका नियंत्रण नहीं किया गया तब फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते है। इसके नियंत्रण के लिए इसे पढ़िए – धान में लगने वाले प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय

प्रमुख रोग

  1. सफेदा रोग
  2. खैरा रोग
  3. शीथ ब्लाइट
  4. झोंका रोग
  5. भूरा धब्बा
  6. जीवाणु झुलसा
  7. जीवाणु धारी
  8. मिथ्य कण्डुआ

धान की फसल में लगने वाले ये प्रमुख रोग है। इनका समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तब फसल को काफी नुकसान पहुंचाते है। इसे नियंत्रण के उपाय यहाँ पढ़ें – धान में लगने वाले प्रमुख रोग एवं नियंत्रण के उपाय

08. प्रमुख खरपतवार

  • होरा घास
  • बुलरस
  • छतरीदार मोथा
  • गन्ध वाला मोथा
  • पानी की बरसीम
  • सांवा
  • सांवकी
  • बूटी
  • मकरा
  • कांजी
  • बिलुआ कंजा
  • मिर्च बूटी
  • फूल बूटी
  • पान पत्ती
  • बोन झलोकिया
  • बमभोली
  • घारिला
  • दादमारी
  • साथिया
  • कुसल

धान की खेती में आपको खरपतवार से भी निपटना आना चाहिए। खरपतवार भी फसल को काफी हद तक नुकसान पहुंचाते है। इसके नियंत्रण के लिए इसे पढ़ें – धान में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें खरपतवार नाशक दवा

धान की खेती कैसे करें इसकी पूरी जानकारी यहाँ बताया गया है। आप उन्नत और आधुनिक खेती से अधिक पैदावार ले सकते है। हमारे देश के किसान भाइयों के लिए धान की खेती की जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए इस जानकारी को उन्हें शेयर अवश्य करें। खेती किसानी से सम्बंधित ऐसी ही उपयोगी जानकारी के लिए achchikheti.com पर विजिट करते रहें। धायनवाद, जय जवान – जय किसान !

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